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क्यों
पहेली बन जाती है किसी कि
ज़िन्दगी,
क्यों
सहेली बन जाती है किसी कि
ज़िन्दगी।
जब भी
सुलझाती हूँ कभी
खुद ही
उलझ जाती हूँ...
कहीं
गुम होती नज़र आती है
पर आख़िर
क्यों तड़पा जाती है
किसी
कि ज़िन्दगी।
न जाने
क्या सोचे बैठी है
कभी खुशी
तो ग़म देती है
कभी ले
आती है बहार
तो कभी
उजाड़ जाती है
किसी
कि ज़िन्दगी।
किसी
मौके पर झूमती है
तो कभी
दर्द में कराहती है
होने
नहीं देती है अहसास
किसी
को अपने दर्द का
किसी
कि ज़िन्दगी।
क्यों
पहेली बन जाती है किसी कि
ज़िन्दगी,
क्यों
सहेली बन जाती है किसी कि
ज़िन्दगी।
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