सच कहें
तो बढ़े हैरान हैं हम
अभी अपने
ही रिश्तों से।
जिसपर
भी करते हैं भरोसा
ना जाने
क्यों वही देते हैं धोखा
कभी
डरते थे दुनिया से हम
मगर
आज खुद से ही डरते हैं
क्यों
होता है ऐसा मेरे साथ
क्या
मैं ना करूँ किसी से बात
सच कहें
तो बढ़े हैरान हैं हम।
रिश्तों
में ढला मेरा बचपन
आज रिश्तों
से डर लगता है
मदद करने
से पहले हर कोई
बीते
वक़्त को खोजता है
सच कहें
तो बढ़े हैरान हैं हम।
बढा
ही अजीब सिस्टम लगता है मुझे
लोगों
का लोगों से जुड़ने का,
उनके
अनुभव से ज्यादा
उनके
वज़ूद को सोचते हैं
सच कहें
तो बढ़े हैरान हैं हम।