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Saturday, November 30, 2013

मैं आज बस का सफ़र कुछ इस तरह करती रही

मैं आज बस का सफ़र
कुछ इस तरह करती रही
भीड़ थी  बस में बहुत,
धक्कों से, एक- एक कर कदम को,
मैं सतह पर रखती रही
चढ़ी थी गेट के आगे से मैं,
तो ड्राईवर की आँख की किरकिरी बनी
 कहना चाहा था बहुत उसने मगर,
भीड़ के चलते न कहते बनी
पा ली थी क़दमों ने मेरे 
बस की सतह पर जगह अपनी,
नज़रों को फ़ुरसत से को बाहर करती
अब भीड़ से बेखबर-सी मैं बनी।
दो- चार स्टेंड के बाद ही,
भीड़ का बवंडर चढ़ा
हाय तौबा न जाने ये कैसी मची
कुछ घुट रहे, कुछ लटक रहे
लोग सामान की लग रहे थे पोटली,
मिलने और बिछुड़ने के बीच में,
एक रोज़ की थी ये  गतिविधि
जिसमें थोड़ा प्यार, थी थोड़ी नफरत भी ,
ख़ामख्वाह झगड़ा था, जलन थी,
 कुढ़न थी, सहारे थे और ठहाके थे,
कुछ भीड़ में खुद को फिट कर रहे थे
कुछ बस में इसी का फायदा भी उठा रहे थे
पीछे से आती आवाज़ों ने
समेट लिया था सबका ध्यान
लड़की ने पीटा था
लड़के को एक पल में
लड़के की माफ़ी पर दो-चार ने किये
किए अपने साफ हाथ भी
अगले स्टेंड लड़का पीटते हुए निकला
कुछ चुभती-घूरती नज़रे,
कुछ जाने-पहचाने चेहरे थे,
कुछ अनजाने-से थे,
बस में ये टॉपिक रोज का था
आज का मुद्दा वो लड़की थी
हर किसी की जुबां पर
बखिया उधेड़ी थी जा रही
लड़की शर्म से थी रो पड़ी
अब अंकल ने भी अपनी सीट उसे दी
चंद ही लम्हों के सफ़र में 
क्या हरकत कर गुज़रते हैं
वो साथ बैठी महिला थी दोहरा रही 



किरण

Saturday, November 23, 2013

अहसास










ऐ हवा तू मुझे छुआ ना कर
तेरी छुअन में मुझे उसकी आहट लगती है।
उसका चेहरा तक मैने नहीं देखा
फिर क्यूँ तू उसका अहसास देती है।


किरण
 

तुम

दीवाना बनाते हो आंखों से तुम
पागल करते हो अपनी बातों से तुम
आख़िर मेरे क्या लगते हो तुम
जितनी दूर जाती हूँ तुमसे
उतने ही पास आते हो तुम

कहना क्या चाहते हो तुम
समझाओ मुझे अपना हर इशारा
कुछ महसूस कराना चाहते हो मुझे
लेकिन कहने से पहले ही घबराते हो तुम
शायद, अपने ही किसी अहसास से डर जाते हो तुम।



किरण

Sunday, November 17, 2013

राहुल आएगा आज बस्ती में


राहुल गांधी आया रे
वादा पुराना लाया रे
डंका बजा है बस्ती में
आया राहुल बस्ती में।

दो दिन से यहाँ हल्ला है
भारी राहुल का पल्ला है 
आज ग्रामीण सेवा मद्दी  है
हुयी परेशां पब्लिक है।

सड़क सफाई वाह जी वाह
वर्कर की धुलाई वाह जी वाह
सालों रहे जो सोये थे
आज काम पर आये हैं।

डंका सुन राहुल गांधी का
समां शांति का बंधा हुआ
हर कौने में पुलिस खड़ी
नज़र गढ़ाए पब्लिक पर।  

पब्लिक मगर सब जानती है
देख पुलिस हर कौने पर 
उनकी टोका-टाकी पर
उन्हें कोसती, फिर हस्ती हुयी गुज़रती है।

घर के  बाहर पुलिस देखकर
मेरा मन पुलकित-सा  होता
रहते जो ये  ऐसे ही खड़े  
न कोई चोरी होती, न कोई सम्मान को रोता। 


किरण

आज सुबह घर से बाहर निकलते ही मेरे सामने कुछ नज़ारा  बदला-सा ही था।  राहुल गांधी के आने से पहले सुबह कुछ यूँ बदली होगी शायद पब्लिक ने भी नहीं सोचा था।