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Monday, January 6, 2014

मैं और मेरा मोहल्ला

सर्द मौसम में बारिश का हो जाना कदमों को घर में ही रोकता है। फिर आज ठण्ड का एहसास भीगा-सा भी है। गली में सब कुछ जैसे बटोरा जा चुका है गली चौड़ी और फैली-सी दिखती है।  आवाजें दबी-दबी रहती है। ऊपर से ये बेरहम बारिश जो सुबह से मुंह खोले बरस रही थी।  हवा में नमी और सड़को पर कीच। ये अंदाज़ था मौसम के चलते। लेकिन जब कानों ने खुद को आज़ाद पाया तो मेरे कदमों ने भी बाहर निकलने की ठान ली।  सर्द मौसम ने हाथों को बग़ल से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी।  मैं सड़क पर बेपरवाह-सी उतर आई हूँ।  मैं अक्सर कुछ आवाज़ों तले हमेशा अपने क़दमों को अलग-अलग रास्तों पर  लेती हूँ। मगर बारिश ने सड़क को खली और शांत सा कर दिया है। इसलिए हरेक आवाज़ तेज़ और तीखी-सी होती है।  सो जितनी आज़ादी मेरे कानों ने महसूस की उतनी ही आज़ादी मेरे क़दमों ने बटोर ली।  मेरे क़दम रफ़्तार नहीं पकड़ रहे थे बल्कि शांति से अपना सफ़र तय कर रहे थे। 

यूँ तो ये गलियां, ये सड़के , ये नुक्कड़ मेरे लिए नए नहीं है लेकिन बाकि दिनों में, मैं इनसे एक अजनबी-सा रिश्ता बनाकर चलती हूँ। मेरा बचपन इन आवाज़ों को अपने में सोखता शामिल  करता हुआ आगे बढ़ा है कि अब ये आवाज़ें आती भी हैं तो मुझसे टकराकर वापिस चली जाती है।  मुझे पता भी नहीं चलता कि मैंने कुछ अनसुना भी किया। 

अपने बचपन से अबतक आवाज़ों को बदलते सुना है। दुकाने ज्य़ादा हो गई हैं तो वहाँ गुट भी बन जाते हैं जो कि अपने ठहाकों की गूंज से सबके ध्यान को खींच लेते हैं कुछ सड़क से गुजरते दुकान वाले से दुआ-सलाम लेते गुजरते हुए उसे अपने रूटीन में शामिल कर चुके है।  बाइक के हॉर्न अब ज्यादा सुनने को मिलते हैं।  कभी तो डरा ही देती हैं तो कभी इतने करीब से गुज़र जाती हैं कि अचम्भा-सा हो जाता है।  दक्षिण पूरी में अब मंदिर पहले के मुकाबले बहुत हो गए हैं जो टाइम टू टाइम जागरण व भजन-कीर्तन दस्तक देते हैं। सुबह और शाम कुछ तो वक़्त मंदिर की घंटी इस सफ़र की रफ़्तार को कुछ सेकेंड के लिए अपने से बाँध लेती है।     


 मैं रोजाना इन आवाज़ों से कटती हुई इस सड़क से जल्दी से जल्दी निकल जाती हूँ जो मुझे अपने शोर से भीड़ का एहसास देती है।  आज सड़क खाली है फिर भी उन सबकी गूँज की कम्पन मेरे शरीर को छू रही हो जैसे और मुझे इधर-उधर आवाज़ तलाशने पर मजबूर कर रही हो।  लगातार आवाज़ों के बीच से गुज़रते रहना इस एहसास में धकेल देता है कि उन आवाज़ों क़ी छाप दिमाग में बैठ जाती है।