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Wednesday, May 20, 2015

पायल से कुछ मुलाकात।


बात तब की है जब पढाई रास नहीं आती थी। सिर्फ ये सूझता था कि ऐसा क्या किया जाये की थोड़ी बहुत आमदनी का जुगाड़ भर हो जाये। मेरा ऐसा सोचना कि एक फ्रेंड ने अपनी बहन का पार्लर का प्रस्ताव मेरे आगे रखा। मैं चली भी गई सीखने और उसी काम को आगे बढ़ाने की सोच लिए।

 (जाने कितने अरमान जाग जाते हैं पलभर में जब कुछ सोचा हो और उस काम की शुरुआत भर भी हो जाये तो सपने उढ़ान भरने लगते हैं और आप ख़्वाहिशों के आसमान पर होते हैं। वाह, क्या फिलिंग होती है वो। पल भर भी थमना नहीं चाहते है आप।बस कुछ ऐसा ही था। उस वक़्त मेरे साथ भी। उम्र कोई ज़्यादा भी नहीं थी। 15-16 साल की ।)

वहीँ मिली थी मैं पायल से ज़हनी तौर पर। हालाँकि कोई अच्छी लड़की नहीं थी वह मेरी नज़र में। मेरी ही हमउम्र थी लेकिन मेरे बिल्कुल विपरीत। रास्ते चलते वह किसी को भी छेड़ दिया करती थी। गाली-गलोच तो पूछो मत। हम भी जब कभी खेला करते तो हमारा खेल भी बिगाड़ दिया करती थी। पूरे दिन साईकिल पर सवार यहाँ से वहाँ ही घूमती रहती। जैसे उसकी माँ उसे कभी न रोकती हो। पापा उसकी गाली पर कभी न टोकते हों और उसके भाई उसके साथ न खेलते हों। वह हर किसी को गलियां दे दिया करती थी। पार्लर में मुझे देख बात करने की कोशिश किया करती थी। मैं उसे एक नज़र भी नहीं देखती थी। ज्यों ज्यों वह बातें करती मैं उतना ही कट जाती। अब मेरी बेरुख़ी उसे पसंद न आती। वह अक़्सर कहती तू इतना चुप क्यों रहती है? मुझसे बात क्यों नहीं करती।

मैंने छूटते ही कहा- तुम इतनी गलियां देती हो। किसी से भी लड़ती हो। मुझे तुम पसंद नहीं। उसे बहुत बुरा लगा। वह बहुत इमोशनल हो गई थी। पार्लर वाली दीदी ने उसे सात्वना दी और बात पलटने की कोशिश भी की। तभी दीदी का फ़ोन बज उठा और वह बाहर चली गई।

मुझे अपनी हरक़त पर पछतावा हुआ। मैंने उसे साफ़ शब्दों में वही दोहरा दिया जो मुझे कहा जाता है अक़्सर।

लड़कियों को गाली नहीं देनी चाहिए। लड़को से झगड़ा नहीं करना चाहिए। न पूरे दिन घूमना चाहिए। तेरे मम्मी पापा कुछ नहीं कहते तुझे?

वह रोने लगी। मैं डर गई कि दीदी मुझे ही डांटेगी तो उसे चुप करने के लिए मनाने लगी। उसके आंसू पोछे। वह मेरे गले लग पड़ी और बोली-मेरे मम्मी पापा यहाँ नहीं हैं । मम्मी मुझसे मिलने आती है कभी कभी। फ़ोन भी कर लेती है। जिनके साथ मैं रहती हूँ वह ही मुझे ये सब सिखाते हैं। रोज़ पैसे मिलते हैं मुझे। मुझे डांस करना सिखाते हैं। ढ़ोलक बजाना मुझे बेहद पसंद है।
मैंने उसे कहा- पागल कैसे रहती है तू अनजान लोगों के साथ मम्मी की याद नहीं आती?

वह बोली- ये लोग जाने नहीं देते। कहते हैं तू हममें से है हमारे साथ ही रहेगी। तेरी माँ ने तुझे पता नहीं कैसे इतने साल छुपा के रख लिया। ये लोग बहुत प्यार से रखते है मुझे। मैं एक बार भाग गई थी। मेरी बढ़ी बी बहुत रोइ थी।मैं उनके पास ही रहती हूँ। वह मुझे समझाती है कि हम हिजड़े हैं और हमें ऐसे ही रहना है। गाली देना हमारे लिए कुछ ग़लत नहीं है। मैं अपनी मण्डली के साथ दुआऍं देने जाती हूँ ये शगुन का काम है।

पायल पूरी बात कहती कि दीदी ने बाहर से पायल को आवाज़ दी। उसकी बी ने उसे बुलाया था। उस वक़्त हम इतना ही जानते थे कि हिजड़े होते हैं कौन होते है पता नहीं। बस गलियों में किसी मौके पर नाचने आते हैं तालियां बजाते हैं लेकिन पायल नहीं बजाती थी। वह हमसे अलग है न वो जानती न मैं। मैं अपनी माँ के साथ रहती हूँ वह क्यों नहीं। कितनी गन्दी मम्मी थी उसकी जो उसे दूसरों के घर छोड़ दिया क्यों? बस ऐसे ही कुछ सवाल वह छोड़ गई थी।
(बस तालियों और घुँगरू की गूँज की मण्डली देख मुझे वह याद हो आई। )

Tuesday, May 19, 2015

क्या दोस्ती हार गई


यार तुम कहीं पागल तो नहीं हो गए हो लड़की ने खिजियाते हुए कहा।
लड़का मुस्कुराते हुए- पागल की क्या बात है यार। जो मन में आता है वही कह जाता हूँ। 
लड़की - तो गर्ल फ्रेंड बनाओ न। दोस्तों के साथ ऐसी बात। गलत है।
लड़का बात टालते हुए- चलो न डेट करते हैं। उम्र निकल रही है यार।
लड़की- चुप करो समझे तुम।
लड़का- 10-12 किस करते हैं तुम्हें ठीक लगे तो आगे बढ़ जायेंगे। वरना रहने देंगे। 
लड़की गुस्स से- तुम्हें एक अच्छा दोस्त बने रहने में क्या प्रॉब्लम है? ऐसा क्यों सोचते हो मुझे लेकर? 
लड़का- पता नहीं। लेकिन तुम अच्छी लगती हो। तुम्हारा फिगर भी बहुत बढ़िया है। 
लड़की-यार तुम्हे एक दोस्त और गर्ल फ्रेंड में अंतर समझ नहीं आता क्या? या तुम मुझे ऐसा वैसा समझते हो?
लड़का-नहीं यार तुम्हारे लिप्स बहुत अच्छे है। किस करने को मन करता है ।
लड़की फिर गुस्से से- ऐसा है आज के बाद मुझसे बात मत करना प्लीज़।
लड़का- तुम इतनी बढ़ी हो गयी हो एक बार सेक्स करने में क्या जाता है। बन जाओ तुम मेरी गर्ल फ्रेंड। बस एक ही तो प्रॉब्लम है कि हम शादी नहीं कर सकते। तुम्हें भी पता होना चाहिए यार एन्जॉय क्या होता है। सबसे करीब हो मेरे और करीब आ जाओगी तो क्या गलत है।
लड़की- गलत ? ये तुम्हे सही लगता है। संगत ही गलत है तुम्हारी। दोस्त कहते हो और ये सब बातें?????
लड़का- यार इससे दोस्ती ख़राब थोड़े होगी। प्यार भी करता हूँ तुम्हें।
लड़की समझाने की हद ख़त्म करते हुए- देखो अगर यही सब सोचते हो मुझे लेकर तो आज के बाद मुझसे बात मत करना। 
लड़का-ठीक है ।
लड़की रोती है और एक अच्छे दोस्त को खोकर अपने आंसू पोछती है लेकिन ये इस बात से भी सन्तुष्ट थी कि दोस्त गलत राह में है। वह सोचती है ये कैसा प्यार है नज़दीकी है की शरीर की चाह है लेकिन जीवन में आगे चलने का हौसला नहीं।।

कभी-कभी समझ नहीं आता रिश्तों को कैसे समझा जाए। साथ छूटने का दुःख होता है लेकिन रिश्ते में होना घुटन पैदा कर देता है। बेबाक होना हमेशा सुखद नहीं होता किसी के लिए।

Sunday, May 17, 2015

आरुषि और मै



कल सुबह की ही तो बात है। रोज़ की तरह ऑंखें मलती घर में आकर अपनी मुस्कान बिखेरती हुई कहती है। उठ गई दीदी तुम। 
कल भी मेरी आँख तो खुल गई थी लेकिन कुछ देर बिस्तर पर सुस्त पड़े रहना भी अच्छा लगता है। आरुषि कमरे में आई और मेरा हाथ पकड़ कर कहती-

आरुषि- दीदी उठो न। 
मैने करवट लेते हुए कहा- अरे आज तो जल्दी उठ गई आरुषि। 
वो मुस्कुराती हुई जल्दी से बोली- हमारे स्कूल की न छुट्टी पड़ गई। आज तो छुट्टी है।
मैं उठ बैठी और पानी पीकर बोली- अच्छा। अब तो दादी के घर जायेगी आरुषि।है न।
आरुषि- अरे नहीं दीदी। आपको तो पता भी नहीं। हमने तो नया घर ले लिया। आज मम्मी सामान ले जायेगी। मम्मी की भी छुट्टी है और पापा की भी छुट्टी है। बहुत दूर जा रे हैं हम। इस गली में।
वह कहती हुई कभी मेरे भाई को उठाती कभी मेरे मम्मी से बात करने लग जाती।

आज सुबह से आरुषि घर नही आई और न ही सुबह से कोई आवाज़ सुनी। पूछने पर पता चला कि वह हमारे साथ वाला मकान ख़ाली करके चले गए हैं। दो साल से कितनी ही सुबह आरुषि की सच्ची झूठी कहानियों और कितने ही सवालों से हॉच-पॉच होकर गुज़री है। मम्मी से तो बहस ही करती रही है। आज दिन के 8 घण्टे उसकी किसी भी हरकत को देखे बिना गुज़र गए। सन्डे भी सन्डे जैसा नहीं और सुबह भी सुबह जैसी नहीं। 


मुझे पता ही नहीं चला की घर खाली करने की बात सच्ची थी। लगा रोज़ की इतनी कहानियां वो ख़ुद ही तो रच लेती है बातों ही बातों में। अपनी कहानी में ढ़ेरों चित्र ऐसे बुनती की उनका सही दायरा बनाना मेरे बसका तो नहीं होता था। हर चीज़ दायरे से बाहर होती आज़ाद होती। मम्मी किसी बात के लिए टोकती हैं तो साफ़ साफ़ न कह देती है जिसपर मेरे होठों पर मुस्कान आ जाती है।