Prevent-Content

Thursday, March 6, 2014

औरत


औरत की पाकीज़गी का ताल्लुक
तो मुझे इस तरह नज़र आता है।
कि आजकल पाकीज़गी भी बस
एक नाम मात्र लफ्ज़ नजर आता है।

समाज ने कभी औरत के मन की
अवस्था से उसे नहीं जानना चाहा
मुहब्बत और वफ़ा के नाम को
हमेशा उसके तन से जोड़ना चाहा।

न दे सकुंगी मैं जवाब जो बच्चा कोई
मुझसे पूछ ले क्या होता हैं बलात्कार?
क्या चल रही बहस, इस शहर में?
प्रश्न से पहले खुद को हटा लेने को हूँ मैं तैयार।

उस सवाल का ख्याल मेरे मन को कचोटता है
कैसी होती है उस आदमी की  मानसिकता
जो बचपन में माँ के दूध को रोता है
बढ़प्पन में वह औरत को नहीं सिर्फ शरीर सोचता है।

मैं चुपचाप ख़ामोश-सी खड़ी ये तमाशा
रोज़ ही अख़बारों और चेनलों पर देखा करती हूँ
किचकिचाती हुई आवाज़ों को रोज़ ही
मैं अपने हाथों तले कानों में भींचा करती हूँ।

यूँ तो अतीत से बेहतर ही अब
इस समाज का नज़रिया होना था
तो फिर क्यों आज भी एक इंसान (औरत ) को
ये समाज किसी और के नज़रिये से तोलना था।

4 comments:

  1. Bahut gehri aur saarthak abhivyakti..apki dusri rachnaon mein bhi bahut umda jazbaaton ko dekha maine..! Keep writing

    ReplyDelete
  2. Bahut hi bdiya... Aj orat apne orat hone ko dhundh rhi hai...
    Darr jese charo trf hai brpa...jo dikhta nai hai pr aspas hoti ghtnao se mna me ghr krta jata hai...
    Wo bhi smy tha jahan hm pal gye...bde huye or n jane kb jwani me kadam rakh gye...aspas ke aangno me khelte...dusro ki chtto pr kudte fandte...pas ki chachi mami bhabhi or baba nana tau bhai chacha bs inhi rishto me jite age niklte gye...jahan chunnu smbhalne ki chinta na hi kisi ke apni or lapkne ka drr...kya dor tha..aj ke smy me to wo bs ek sapna hi.lagta hai...

    ReplyDelete
  3. रामजी मिश्र 'मित्र'' समय समय पर सोसल मीडिया में भी इस प्रकार की बहस के मुद्दे उछलते रहे हैं। मेरे मित्रों के बने फेसबुक अकॉउंट पे कई बार इस टाइप के पोस्ट होते हैं और फिर बहस होती है विषय का शीर्षक होता है जैसे छोटे कपड़ें, अश्लील औरते आदि।आज मैं उनसे पूंछता हूँ कि उनकी माँ बहन छोटे कपडे पहने तो क्या वो माँ बहन नहीं रहेगी? क्या उसके प्रति दृष्टिकोण बदल जाएगा? नारी को वेश्या शब्द ब्रम्हा ने दिया पर पुरुष के लिए उनके शब्दकोष में अकाल पड़ गया था? सती प्रथा नारियों के लिए थी पुरुष को सता होने पे किसी पुराण ने मना किया था क्या? नारियों को छेड़ने वाले पुरुष नहीं क्या महिलाएं होती हैं फिर उनकी सभ्यता क्या घास चरने जाती है। अब बोलिये स्त्री असभ्य होती है या स्त्री को तालीम बताने वाले उपदेशक असभ्य होते हैं ?छोटी मानसिकता होती है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है जो इस ढोंगी समाज द्वारा बनाये ढोंग को मानती हैं क्या पुरुष उन पर गलत दृष्टि नहीं डालता। शहरो में अश्लीलता का बहाना बलात्कार का कारण है फिर गाँव में ऐसा क्यों होता है। विरोध होगा जहाँ लोगों की मानसिकता को चोट पहुंचेगी। भोग की सामग्री बना कर रख दिया है इस समाज ने। ऐसा लगता है कि मानो वह साक्षात परब्रम्ह से ज्ञान लेकर पैदा हुए हों या फिर उन्हें इसका काम सौपा गया हो। स्त्री कैसे रहेगी यह निर्धारण पुरुष करेगा लेकिन वह स्वयं कैसे रहे इसमें वह खुद को स्वतंत्र मानता है। स्त्रियां पर पुरुष को देखे तक नहीं लेकिन पुरुष को हर नारी को देखने भालने का पूर्ण अधिकार है। जो लोग स्त्री के मर्यादा के नाम पे उनमे नंगापन देख रहे हैं मैं उसी में समाज का नंगापन देख रहा हूँ। सच कहा जाए तो इस समाज में पुरुष की मानसिकता कमजोर, दूषित और शंकालू हो चली है और जैसे ही उसकी इस मनः स्थिति का प्रदर्शन होने लगता है वह तिलमिला उठता है और उपदेश और ज्ञान के भण्डार का प्रदर्शन शुरू कर देता है। पुरुष श्रेष्ठ तभी है जब वह नारी को प्रताड़ित न करे उस पर अपनी कुंठा थोपे नहीं। अगर वह यह नहीं कर सकता तो उसके पौरुषत्व में कमी है और वह स्त्री को तालीम की पोथी के पाठ शुरू कर देता है।पुरुष सिर्फ स्त्री को अपनी सत्ता का अहसास कराना चाहता है वह एक शोसक के रूप में उभर कर सामने आया है। मातृ सत्ता को समाप्त करने का प्रयास करके पितृ सत्ता को थोपने का काम आज भी जारी है। सब जानते हैं सती प्रथा नारियों के लिए थी पर यह भी तो बताओ पुरुष को सता होने पे किसी पुराण ने मना किया था क्या? अरे सच तो यही है आज भी स्त्री का स्तर हमारे समाज में बहुत गिरा है। आज कानून जो स्त्री के पक्ष में हैं वह पहले से कागज पर ही हैं अब उन्हें कुछ ठेकेदार और कमजोर बनाने का समर्थन करते है। स्त्रियां घर से न निकले अगर निकले तो किसी से बोले नहीं न किसी के साथ आएं जाएँ अन्यथा वह खराब चरित्र की हो जाएंगी। और तो और अगर फुटबाल जैसे खेल भी साडी और बुर्के में खेलें तभी मर्यादित मानी जाएंगी। पर्दा प्रथा का समर्थन धर्म के नाम पे करने वालों यह भी तो बताओ किस श्लोक में पर्दा प्रथा अनिवार्य लिखा है? कहाँ लिखा है पर्दा करने से स्त्री को स्वर्ग मिलेगा? कौन सा सुख देने के लिए स्त्रियों पे इतनी सारी पाबंदियां? नारी को परिभासित करने वालों तुम्हारी खुद को परिभासित करने की परिभासा क्या है? कमजोर असहाय अबला नारी को खूब तालीम बताओ पर उसे आत्मकुंठित करने का घोर पाप तो न करो। हो सकता है नारी वेश्या होती हो उसे नर्क मिले पर वहां जाने वाले पुरुषों को ब्रम्हलोक मिलेगा यह क्या शंकर ने कहा है की विष्णू ने? जीतनी गालियां बनी सारी ही तो अबला पर ही बना डाली गयीं। पुरुष सत्ता क्या साक्षात् परमब्रम्ह परमेश्वर था क्या? स्त्री मर जाये तो पुरुष का कुछ नहीं पर पुरुष मर जाये तो पहले स्त्री को सजाओ फिर उसकी चूड़ियाँ तोड़ो और फिर उसे अभागन घोसित कर दो। यही है समाज की हकीकत। सच तो यह है महिलासत्ता आज भी क्रूरतम अत्याचारों की शिकार है। उसके लिए सभ्य समाज द्वारा विधवा, रंडी और न जाने कौन कौन शब्द सम्मान तैयार रखे हैं। मानस और गीता का कुतर्क में प्रयोग करने वालों से मैं पूछता हूँ कि परनारी के विषय में मानस का अवलोकन क्यों नहीं। पग नुपुर की करौ चिन्हारी।ऊपर कबहु न सीय निहारी।। यह सब पढना सभ्य समाज इस लिए भूल जाता है क्योकि इसमे उसकी ही गलत मानसिकता को चोट पहुंचती है। और हाँ अगर कोई कम कपडे पहन कर कुतिया हो जाती है तो उसे निहारने वाला भी तो कुत्ता होना चाहिए!!!

    ReplyDelete