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Tuesday, March 18, 2014

होली

क्या खूब थी
इस बार की होली
दो दिन पहले से ही
माँ ने लगा दी होड़
गुजियों और पकोड़ों की
मेरे घर की तो
लगता है ये रीत है पुरानी
 दही बड़े और पकोड़ों की
मांग ही है की जाती
मैं क्या बढ़ी हुई
अब मुझे भी माँ
इन सब कामो में है लगा लेती
कहती है तू अब सीख ले
अपने घर जाकर
तुझे भी तो यह सब करना है
सास, ससुर देवर, जेठ
और ननद का मन हरना है
मैं झुंझलाकर कहती
 चुप हो जाओ मम्मी
लो थोडा रंग लगा लो
आज ही खेलो
तुम मेरे संग होली
वो चुप होकर
गुजिया और मठियों 
हो गयीं व्यस्त
खूब थकाया गुजियों ने
होली की सुबह
जल्दी से उठकर
रंग लगाया मम्मी को,
रंग लगाया ताई को, ताऊ को,
और अपने भाइयों को
और हो गयी मैं
कमरे में बंद
जाने फिर आँख लगी
लोग आये भी
और चले गए शायद
जब आँख खुली बाहर सब
ठहाके थे मार रहे
मामा मामी उनके बच्चे
और नानी देख मुझे
खींच लिया कमरे से बाहर
मेरे पांव छूकर मामा-मामी
बोले खेलेंगे अब हम होली
मैं नानी की बांहों में
छुपाकर खुद को 
कहती बस गुलाल लगा लो
मामी रंग पानी में भर
दिया उंडेल मेरे ऊपर
बच्चों ने रंगा गुलाल से
मामा ने टीका लगा
होली पर आशीर्वाद दिया
खूब नचाया नानी को
और बच्चों ने मुझको
दूर हुई थकावट मेरी
मैं होली नानी संग खेली
क्या खूब थी मेरी
इस बार की होली.