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Wednesday, July 10, 2013

अब रोज़ सुबह ऐसी होती है


अब रोज़ सुबह मेरी, कुछ इस तरह होती है,
मेरे उठने से पहले ही, मां आवाज़ मुझे लगाती है।
मै अलसाई आंखो से, उन्हें टोक दिया करती हूँ,
कहाँ जाना अब करके तैयारी,
घर में ही तो सारा दिन बिताती हूँ।

माँ झुंझला कर कहती बेटा,
लड़की जात न सोती इतना, पराए घर जाना है तुझको,
बहुत हुआ नौकरी का चक्कर, ये कभी न भाए मुझको।
देर से सोना, देर से उठना ये क्या रीत चला ली है,
तेरा जल्दी उठकर पूजा करना, कहां ये सीख भुला दी है।

खींच के चादर अपने शरीर पर, बस 5 मिनिट, बस 5 मिनिट,
इतना कह मैं फिर आंखों पर, नींद की चादर ढकती हूँ।
माँ फिर झुंझलाकर कहती मुझसे,
वही सुबह है वही शाम, बस दुनिया तेरी बदली है।

मैं उनिदि पलकों से माँ को घूरे रहती हूँ,
मेरा गुस्सा जान मेरी माँ, मिठी-सी मुस्कान दिए माँ,
मेरा हाथ थामे, मिठी चाय का कप दिए,
नौ बजे हैं, ये सुबह नहीं.....होले से कहती है। 

हम्महम्म  करके मैं चाय पकड़ती, अपना धीर बंधाती हूँ,
सुबह-सुबह बरसती ममता, अपनी माँ की मैं पाती हूँ।
उसकी बाहों मे सिर रख बच्ची सी बन जाती हूँ,
स्पर्श प्रेम का पाकर माँ का, फिर उसी पल सो जाती हूँ।

kiran

Monday, July 8, 2013

ख़्वाहिश



ख़्वाहिशें हैं दिल में कुछ बनने की
तमन्ना है ज़िन्दगी में कुछ पाने की।
शायद ये ख़्वाहिशें मेरी पूरी हो
क्योंकि सोच के दायरे से बनी है
ये एक ख़ूबसूरत-सी ख़्वाहिश।
इच्छा है तो सिर्फ सफलता की
जो तुफान की लहरों की तरह
उम्मीद बनके कभी न कभी
मेरी ज़िन्दगी में सच होने आएगी
क्योंकि है ये एक ख़ूबसूरत-सी ख़्वाहिश।

मैं वो नहीं




'उफ' तेरी ये मदहोश निगाहें
क्यों मेरा साथ कभी छोड़ती नहीं।
जब भी देखा है पलके उठाकर
अपने सिवा कोई नज़र आता नहीं।

न जाने ये आंखें क्या कहना चाहती है
'हाँ' खामोश तो कभी ये रहती नहीं।
तेरी आंखे मुझे एक ख़्वाब दिखाना चाहती है
मगर जुबाँ तेरा साथ देती नहीं।

खिंची चली आती हूँ मैं तेरी ओर
पर रोक लेता है मेरा ये दिल।
तूने किया नहीं इकरार कभी
इसलिए बस, दिल बार-बार यही दोहराता है... 
मैं वो नहीं,मैं वो नहीं।